राजस्थान में प्रचलित रीति -रिवाज & प्रथाएं
- गर्भाधान
- पुंसवन- पुत्र प्राप्ति हेतू
- सिमन्तोउन्नयन- माता व गर्भरथ शिशु की अविकारी शक्तियों से रक्षा करने के लिए।
- जातकर्म
- नामकरण
- निष्कर्मण- शिशु को जन्म के बाद पहली बार घर से बाहर ले जाने के लिए।
- अन्नप्रसान्न- पहली बार अन्न खिलाने पर (बच्चे को)
- जडुला/ चुडाकर्म – 2 या 3 वर्ष बाद प्रथम बार केस उतारने पर
- कर्णभेदन
- विद्यारम्भ
- उपनयन संस्कार- गुरू के पास भेजा जाता है।
- वेदारम्भ – वेदों का अध्ययन शुरू करने पर
- गौदान- ब्रहा्रचार्य आश्रम में प्रवेश
- समावर्तन- शिक्षा समाप्ति पर
- विवाह- गृहस्थ आश्रम में प्रवेश
- अन्तिम संस्कार- अत्येष्टि
- सगाई
- टीका
- लग्नपत्रिका
- गणेश पूजन/ हलदायत की पूजा
- विवाह के तीन दिन, पांच दिन, सात दिन, नौ दिन, पूर्व लग्न पत्रिका पहुंचाने के बाद वर पक्ष एवं वधू पक्ष ही अपने- अपने घरों में गणेश पूजन कर वर और वधू घी पिलाते है। इसे बाण बैठाना कहते है।
- बिन्दोंरी/ बन्दोली
- सामेला/ मधुपर्क
- ढुकाव
- तौरण मारना
- पहरावणी/ रंगबरी (दहेज)
- बरी पड़ला (वधू के लिए वर पक्ष द्वारा परिधान भेजना)
- मुकलावा/ गैना
- बढ़ार
- कांकण डोरडा/ कांकण बंधन- बन्दोली के दिन वर और वधू के दाहिने हाथ और पांव में कांकण डोरा बांधा जाता है।
- मांडा झाकणा
- कोथला (छुछक)
- जान चढ़ना/ निकासी
- सास द्वारा दही देना
- मंडप (चवंरी) छाना
- पाणिग्रहण/ हथलेवा जोड़ना
- जेवनवार – पहला जेतनवार पाणिग्रहण से पूर्व होता है, जिसे “कंवारी जान का जीमण” कहते है। दूसरे दिन का भोज ” परणी जान का जीमण” कहलाता है। शाम का भोजन” “बडी जान का जमीण” कहलाता है। चैथा भोज मुकलानी कहलाता है।
गृहप्रवेश/ नांगल – वर की बहन या बुआ (सवासणियां) कुछ दक्षिणा लेकर उन्हें घर में प्रवेश होने देती है। इसे “बारणा राकना ” कहते है। वधू के साथ उसके पीहर से उसका छोटा भाई या कोई निकट संबंधी आता है। वह ओलन्दा या ओलन्दी कहलाती है।
राति जगा
रोड़ी पूजन
बत्तीसी नूतना/भात नूतना
मायरा/ भात भरना
मृत्यु से संबंधित संस्कार
बैकुण्ठी- अर्थी
बखेर- खील, पतासा, रूई, मूंगफली, रू. पैसे व अनाज आदि
आधेठा- अर्थी का दिश परिवर्तन करना।
अत्येष्टि
लौपा/ लांपा- आग जो मृतक को जलाती है।
मुखाग्नि देना
कपाल क्रिया
सांतरवाडा- अन्त्येष्टि के पश्चात् लोग नहा-धोकर मृतक व्यक्ति के यहां सांत्वना देने जाते है। यह रस्म 12 दिन तक चलती है।
फूल चूनना- अन्त्येष्टि के तीन दिन बाद।
मोसर/ ओसर/ नुक्ता- बारहवें दिन मृत्यु भोज की प्रथा है।
Q 1. ‘झिम्मी’ क्या है –
पुत्र-जन्म के पश्चात चौहदवें दिन होने वाली रस्म
पर्यूषण-पर्व के दौरान तीन दिन का उपवास
फेरे अथवा सप्तपदी के समय मामा द्वारा दी गई और वधू द्वारा पहनी गई गोटे-किनारी युक्त लाल-गुलाबी ओढ़नी
संतान-प्राप्ति के बाद बेटी को विधि-विधान से ससुराल विदा करने की प्रक्रिया
B
Q 2. राजस्थान में गोला, दरोगा, चाकर, चेला आदि सम्बोधन किसके लिए प्रयुक्त होते थे –
तांत्रिक के लिए
घरेलू दास के लिए
पुलिसकर्मी के लिए
बन्धुआ मजदूर के लिए
B
Q 3. आदिवासियों में प्रचलित लीला-मोरिया संस्कार किस अवसर से जुड़ा हुआ है –
विवाह
सगाई
जन्म
नामकरण
A
Q 4. उदयपुर राज्य में ‘डाकन प्रथा’ पर प्रतिबन्ध कब लगाया गया –
1850 में
1853 में
1855 में
1858 में
B
Q 5. बढार का भोज निम्न में से किस मौके पर रखा जाता है –
विवाह
जन्म
मृत्यु
तीर्थ-यात्रा
A
Q 6. ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी व अन्य सामान खरीदने के बदले दिया जानेवाला अनाज क्या कहलाता है –
कीणा
ईंच
लाणी
दाण
A
Q 7. हरविलास शारदा द्वारा 1929 में पारित ‘शारदा एक्ट’ में लड़के व लड़की की विवाह योग्य आयु क्रमशः रखी गई –
18वर्ष व 14वर्ष
21वर्ष व 18वर्ष
18वर्ष व 15वर्ष
19वर्ष व 16वर्ष
A
Q 8. मृत्यु उत्सव के लिए राजस्थान में निम्नलिखित में से कौन सा एक नाम है –
दापा
मोसर
हेल्मो
बढार
B
Q 9. सुमेलित कीजिए –
कुप्रथा सर्वप्रथम रोक लगाने वाली रियासत
- कन्या वध अ. कोटा
2 समाधि प्रथा ब. बूंदी
- सती प्रथा स. जयपुर
- त्याग प्रथा द. जोधपुर
1, 2, 3, 4
अ, ब, द, स
अ, स, द, ब
अ, स, ब, द
द, स, ब, अ
C
Q 10. हाड़ौती के पाॅलिटिकल एजेंट ‘विलकिंसन’ के प्रयासों से किस प्रथा पर रोक लगाई गई –
त्याग प्रथा
कन्या वध
डाकन प्रथा
समाधि प्रथा
B